9/10/2013

ग्लोबल बैंक की दिशा में सुस्ती-सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का नहीं हो रहा है विलय

भारतीय बैंक बेहद पीछे
बैंकर पत्रिका द्वारा इसी साल एक जुलाई को जारी दुनिया के शीर्ष 1000 बैंकों की सूची में पहले स्थान पर पहली बार चीन का आईसीबीसी आ गया
इस सूची में टॉप 10 बैंकों में चीन के चार बैंक हैं, जबकि 1000 बैंकों में चीन के 96 बैंक हैं
भारत का सिर्फ भारतीय स्टेट बैंक इस सूची में है, वह भी शीर्ष 100 बैंकों में नहीं है शामिल

भारत में भी विश्व स्तर के कम से कम दो-तीन बैंक बनाने की वित्त मंत्री पी चिदंबरम की ख्वाहिश पर जिस तरह से काम हो रहा है, उसे देख कर तो लगता है कि चालू वित्त वर्ष में शायद ही ऐसा हो पाए। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें तो एक भारतीय स्टेट बैंक ही है जिसे बड़ा बैंक कहा जा सकता है।
लेकिन यदि इंडस्ट्रियल एंड कॉमर्शियल बैंक ऑफ चाइना (आईसीबीसी) से तुलना हो तो भारत का एक भी बैंक उसके सामने नहीं ठहर सकता, क्योंकि पिछले तीन साल से लगातार उसका शुद्ध लाभ 49 अरब डॉलर रहा है। वहीं, पिछले वर्ष स्टेट बैंक का शुद्ध लाभ 14,105 करोड़ रुपये रहा था जिसे यदि डॉलर में बदलें तो यह तकरीबन 2.15 अरब डालर ही बैठता है।
पिछले वर्ष नवंबर में आयोजित भारतीय बैंकिंग कांफ्रेंस (बैंकोन) के दौरान चिदंबरम ने कहा था कि भारत में भी कम से कम दो-तीन विश्वस्तरीय बैंक होने चाहिए। उनका तर्क है कि भारत दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर अग्रसर है तो यहां विश्व स्तर का तो बैंक होना ही चाहिए। उनके हिसाब से स्थानीय स्तर के बैंकों के सहारे देश अंतरराष्ट्रीय आर्थिक अखाड़े में ज्यादा देर तक नहीं टिक सकता।
वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी से कुछ बैंकों को मिला कर बड़े बैंक बनाने की दिशा में हो रही प्रगति के बारे में जब पूछा गया तो उनका जवाब मिला कि इस दिशा में काम हो रहा है।
जब उनसे यह जानने की कोशिश की गई कि कब तक ऐसा हो पाएगा तो उन्होंने इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया। एक सरकारी बैंक के निदेशक से जब यह सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा 'देखिये, कब तक हो पाता है।
मैंने सत्तर के दशक में बैंक की नौकरी शुरू की थी, तभी से ऐसा सुन रहा हूं। अभी तक तो भारतीय स्टेट बैंक के साथ ही उनके एसोसिएटेड बैंकों का विलय नहीं हो पाया है। अन्य बैंकों का विलय कब तक हो पाता है, उसका इंतजार है।'
सरकार ने बैंक ऑफ इंडिया तथा यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के विलय के लिए वर्ष 2006 में सारी औपचारिकताएं पूरी कर ली थीं, लेकिन बैंक कर्मचारी यूनियन तथा वामपंथी दलों के विरोध के कारण ऐसा नहीं हो पाया था।
हालांकि, बैंक की तरफ से विलय की तैयारी शुरू कर दी गई। इसी तरह विजया बैंक और देना बैंक का पंजाब नेशनल बैंक के साथ विलय की बात थी। वह भी नहीं हो पाया है। तीसरा क्लस्टर इंडियन बैंक, कॉरपोरेशन बैंक और ओरियंटल बैंक ऑफ कामर्स का बना था, लेकिन वह भी नहीं हो पाया।
हाल ही में जारी 'केपीएमजी' की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि सरकारी बैंकों के विलय में जब तक सरकार की तरफ से मजबूत कदम नहीं उठाया जाएगा तब तक ऐसा नहीं हो पाएगा क्योंकि अब सरकारी क्षेत्र में कोई भी कमजोर बैंक नहीं बचा है। यदि बैंकों की आर्थिक हालत खराब होती तो अलग ही बात होती।